भारत का इंग्लैंड दौरा 2025: फाइनल टेस्ट से पहले गंभीर बनाम पिच क्यूरेटर विवाद- क्रिकेट सिर्फ़ बल्ले और गेंद का खेल नहीं, यह दिमाग और मिज़ाज का भी खेल है। मैदान पर रणनीति बनती है, बदलती है और कई बार तो मैदान के बाहर भी, माहौल गरमा जाता है। ऐसा ही कुछ ताज़ा वाकया ओवल के मैदान पर देखने को मिला, जब भारतीय टीम के हेड कोच गौतम गंभीर और स्थानीय पिच क्यूरेटर ली फोर्टिस के बीच तीखी बहस हो गई। यह सिर्फ़ एक मामूली नोंक-झोंक नहीं थी, बल्कि यह खेल के अदृश्य नायकों और टीम के रणनीतिकारों के बीच के रिश्ते की जटिलताओं को उजागर करती है। मैं इस घटना को सिर्फ़ एक खबर नहीं, बल्कि क्रिकेट की बारीकियों को समझने का एक मौका मानता हूँ।
पिच, क्यूरेटर और खेल का गणित
किसी भी टेस्ट मैच में पिच की भूमिका सबसे अहम होती है। यह सिर्फ 22 गज की पट्टी नहीं, बल्कि पूरे खेल का मिज़ाज तय करती है। क्यूरेटर, वो शख्स होता है जो इस 22 गज की पट्टी को अपने हाथों से गढ़ता है। वह मिट्टी, घास, नमी और रोलर की चाल से ऐसा कैनवास तैयार करता है, जिस पर कलात्मक स्ट्रोक, घातक स्विंग, घूमती हुई गेंदें और तेज़ उछाल भरी गेंदें अपने जौहर दिखाती हैं।
एक क्यूरेटर का काम सिर्फ पिच बनाना नहीं, बल्कि उसे मैच के दौरान भी बनाए रखना है, ताकि खेल निष्पक्ष और रोमांचक बना रहे।क्यूरेटर अपने मैदान और अपनी पिच को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। यह उनका बच्चा होता है, जिसे वे महीनों की मेहनत से तैयार करते हैं। उनकी कोशिश होती है कि पिच ऐसी हो, जो खेल के हर पहलू को बढ़ावा दे, लेकिन साथ ही घरेलू टीम की ताकत को भी ध्यान में रखे। हालांकि, यहीं पर कई बार विरोधाभास पैदा होता है।
मेहमान टीम हमेशा एक ऐसी पिच चाहती है जो उनकी अपनी ताकत के अनुकूल हो, जबकि घरेलू टीम अपने फायदे के लिए उसे अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करती है। यह अदृश्य रस्साकशी अक्सर पर्दे के पीछे चलती रहती है।
गंभीर का मिज़ाज और उनकी अपेक्षाएं
गौतम गंभीर, एक ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जो हमेशा से अपनी मुखरता और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं। चाहे वह मैदान पर हो या मैदान के बाहर, गंभीर अपने विचार रखने से कभी नहीं हिचकिचाते। बतौर हेड कोच, उनकी भूमिका अब बल्ले से रन बनाना नहीं, बल्कि पूरी टीम के लिए एक माहौल तैयार करना है, जहां हर खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ दे सके। इसमें पिच की समझ और उसका टीम के अनुकूल होना भी शामिल है।ओवल में जो हुआ, वह गंभीर के इसी आक्रामक मिज़ाज का एक पहलू था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय टीम के सदस्य पिच का मुआयना करने गए थे और उन्हें 2.5 मीटर की दूरी बनाए रखने को कहा गया। बैटिंग कोच सितांशु कोटक ने भी इस बात की पुष्टि की कि क्यूरेटर ने उनके स्टाफ पर भी चिल्लाया जब वे आइस बॉक्स रखने की कोशिश कर रहे थे।और इस तरह का व्यवहार पिछले चार टेस्ट मैच में किसी भी क्यूरेटर ने नहीं किया।एक हेड कोच के तौर पर, गंभीर शायद अपनी टीम के प्रति इस तरह के “अपमानजनक” व्यवहार को स्वीकार नहीं कर पाए। उनके लिए यह सिर्फ पिच से दूरी बनाने का मुद्दा नहीं था, बल्कि यह टीम इंडिया के सम्मान का सवाल था।

गंभीर जानते हैं कि एक अच्छी पिच टीम के प्रदर्शन को कितना प्रभावित कर सकती है। भारतीय टीम को ओवल में सीरीज ड्रॉ करने के लिए जीतना होगा, और ऐसे में पिच की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। हो सकता है गंभीर को लगा हो कि पिच क्यूरेटर का व्यवहार उन्हें असहज करने या उनकी टीम को प्रभावित करने की एक कोशिश थी। उनका “आप हमें मत बताइए कि हमें क्या करना है” का बयान उनकी इसी भावना को दर्शाता है। यह सिर्फ एक शब्दिक टकराव नहीं था, बल्कि यह एक अनुभवी क्रिकेटर और एक समर्पित कोच की अपने खिलाड़ियों और अपनी टीम के लिए चिंता थी।
इंसानी पहलू: भावनाओं का टकराव
इस पूरे विवाद में एक गहरा इंसानी पहलू भी है। एक तरफ ली फोर्टिस जैसे अनुभवी क्यूरेटर हैं, जिन्होंने ओवल की पिचों को तैयार करने में महारत हासिल की है और लगातार तीसरे साल “बेस्ट मल्टी-डे पिचों” का पुरस्कार जीता है। जाहिर है, उन्हें अपने काम पर गर्व होगा और वे नहीं चाहेंगे कि कोई उनके काम में दखल दे या उनके निर्देशों की अवहेलना करे। उनका कहना कि “यह मेरा काम नहीं है कि सबको खुश रखूँ”, उनकी इसी पेशेवर गरिमा को दर्शाता है।
दूसरी तरफ गौतम गंभीर हैं, जो अपने खिलाड़ियों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। एक कोच के रूप में, उनका पहला कर्तव्य अपनी टीम को सर्वोत्तम संभव परिस्थितियों में खेलना सुनिश्चित करना है। जब उन्हें लगा कि उनकी टीम को बेवजह परेशान किया जा रहा है या पिच को लेकर कोई अनुचित व्यवहार हो रहा है, तो उनका गुस्सा स्वाभाविक था। यह एक कप्तान के रूप में उनकी पुरानी आदत है कि वे अपनी टीम के लिए खड़े होते हैं।

यह टकराव सिर्फ नियमों या प्रोटोकॉल का नहीं था, बल्कि यह दो मजबूत शख्सियतों के अहंकार और समर्पण का भी था। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं और दोनों ही अपने काम को पूरी लगन से करते हैं। लेकिन जब उनका काम टकराता है, तो ऐसे टकराव सामने आते हैं।
आगे की राह: संवाद और समझदारी
अब जबकि विवाद थोड़ा शांत हो गया है, महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे मामलों को कैसे संभाला जाए। क्रिकेट में खिलाड़ियों, कोचों और मैदान के कर्मचारियों के बीच सम्मान और समझ का रिश्ता होना बेहद ज़रूरी है। बेशक, नियम और प्रोटोकॉल होते हैं, लेकिन मानवीय पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।शायद इस घटना से दोनों पक्षों को कुछ सीखने को मिलेगा।
क्यूरेटर को यह समझना होगा कि मेहमान टीम भी अपनी तैयारी के लिए पिच का उचित मुआयना करना चाहती है, और कोच को भी यह समझना होगा कि क्यूरेटर अपने काम को लेकर संवेदनशील होते हैं। संवाद और आपसी समझदारी ही ऐसे विवादों को भविष्य में टाल सकती है।क्रिकेट का खेल भावनाओं से भरा होता है। मैदान पर खिलाड़ी भावनाओं में बह जाते हैं, कोच रणनीति बनाते हुए उत्तेजित हो जाते हैं और क्यूरेटर भी अपनी बनाई पिच के प्रति बेहद भावुक होते हैं।
गंभीर बनाम फोर्टिस विवाद इसी मानवीय भावना का एक प्रमाण है। यह याद दिलाता है कि क्रिकेट सिर्फ स्कोरबोर्ड का खेल नहीं, बल्कि इसके पीछे काम करने वाले हर व्यक्ति के जुनून, समर्पण और कभी-कभी टकराव का भी खेल है। उम्मीद है कि यह विवाद खेल के मैदान पर एक रोमांचक मुकाबले में तब्दील हो, न कि कोई कड़वाहट छोड़े।