भारत बनाम इंग्लैंड, चौथा टेस्ट, चौथा दिन, ओल्ड ट्रैफर्ड का रण: राहुल और गिल की दीवार, क्या टूट पाएगा इंग्लैंड का तिलिस्म?

भारत बनाम इंग्लैंड, चौथा टेस्ट,चौथा दिन,ओल्ड ट्रैफर्ड का रण: क्रिकेट जज़्बातों का, उम्मीदों का, और कभी-कभी तो बस एक अकेले खिलाड़ी की जिद का खेल होता है। ओल्ड ट्रैफर्ड में भारत और इंग्लैंड के बीच चल रहे चौथे टेस्ट के चौथे दिन हमने यही देखा। एक ऐसा दिन, जिसने हमें न सिर्फ क्रिकेट की अनिश्चितता से रू-ब-रू कराया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे नीचे गिरने के बाद फिर से मैच में वापिस आया जा सकता है, या कम से कम उस ओर एक मजबूत कदम बढ़ाया जा सकता है।

सुबह का भयानक सपना: शुरुआती झटके और बेजान गेंदबाजी

चौथे दिन की शुरुआत भारत के लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं थी। एक बार फिर वही पुरानी कहानी दोहराई गई। जब विकेट की सबसे ज्यादा जरूरत थी, जब बल्लेबाजों पर दबाव बनाए रखना था, तब हमारे गेंदबाजों में वो धार नहीं दिखी जिसकी उम्मीद की जाती है। हां, इंग्लैंड ने बड़ा स्कोर बनाया, और जो रूट और बेन स्टोक्स ने शानदार शतक जड़े, लेकिन कहीं न कहीं हमारी गेंदबाजी में वो आक्रामकता और निरंतरता नहीं थी जो एक टेस्ट मैच में सामने वाली टीम पर हावी होने के लिए जरूरी होती है। यह एक ऐसा पहलू है जिस पर टीम प्रबंधन को गंभीरता से विचार करना होगा।

इंग्लैंड ने अपनी पहली पारी 669 रनों के विशाल स्कोर पर समाप्त की, और 311 रनों की पहाड़ जैसी बढ़त हासिल कर ली। यह बढ़त सिर्फ अंकों में नहीं थी; यह मानसिक दबाव के रूप में भारतीय खेमे पर हावी थी।

मुझे याद है, जब मैं टीवी पर मैच देखने बैठा, तो मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। क्या हमारी टीम इस दबाव को झेल पाएगी?और मेरी आशंकाएं सच साबित हुईं। भारतीय पारी की शुरुआत भयावह रही। शून्य के स्कोर पर ही हमने यशस्वी जायसवाल और साई सुदर्शन जैसे अपने युवा और प्रतिभावान सलामी बल्लेबाजों को खो दिया। यह वो पल था जब लगा कि मैच अब हमारे हाथ से रेत की तरह फिसल रहा है। दो विकेट, शून्य रन, और सामने 311 रनों की विशालकाय लीड। किसी भी क्रिकेट टीम के लिए इससे बुरा सपना शायद ही हो। उस समय, कई लोग शायद टीवी बंद कर चुके होंगे, हार मान चुके होंगे। लेकिन क्रिकेट का यही तो जादू है, यह कभी भी आपको पूरी तरह से हार मानने नहीं देता।

केएल राहुल और शुभमन गिल: उम्मीद की किरण

जब सब कुछ खत्म होता लग रहा था, तब दो नाम सामने आए—केएल राहुल और शुभमन गिल। इन दोनों बल्लेबाजों ने न सिर्फ विकेट गिरने की रफ्तार को रोका, बल्कि एक ऐसी साझेदारी बनाई जिसने भारतीय प्रशंसकों के मन में उम्मीद की लौ फिर से जगा दी। यह सिर्फ रनों की साझेदारी नहीं थी, यह विश्वास की साझेदारी थी, धैर्य की साझेदारी थी। राहुल, जो अक्सर अपनी तकनीक को लेकर आलोचनाओं का सामना करते हैं, उन्होंने एक बार फिर अपनी क्लास दिखाई। उनकी बल्लेबाजी में एक परिपक्वता थी, एक संयम था जो ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में ही देखने को मिलता है। हर गेंद को सम्मान देना, खराब गेंदों पर प्रहार करना, और सबसे महत्वपूर्ण, विकेट बचाए रखना—राहुल ने यही किया।

और उनके साथ थे शुभमन गिल, गिल ने भी कमाल का जज्बा दिखाया। उनका बल्ला आज आग उगल रहा था, लेकिन उसमें एक ठहराव भी था। उन्होंने अनावश्यक जोखिम नहीं लिए और राहुल के साथ मिलकर इंग्लैंड के गेंदबाजों को निराश किया। उनकी बल्लेबाजी में एक अलग ही आत्मविश्वास नजर आ रहा था, जैसे वह जानते हों कि उन्हें क्या करना है। इस साझेदारी ने न सिर्फ 311 रनों की लीड को कम किया, बल्कि इंग्लैंड के गेंदबाजों को भी थका दिया।चौथे दिन का खेल खत्म होने तक, राहुल 87 और गिल 78 रनों पर नाबाद थे। दोनों शतक के करीब हैं, और यह भारत के लिए एक बहुत बड़ा सकारात्मक संकेत है। उन्होंने टीम को 174/2 तक पहुंचाया और इंग्लैंड की लीड को 137 रनों पर ला दिया। यह आंकड़ा भले ही अभी भी बड़ा लगे, लेकिन जिस तरह से भारत ने दिन का अंत किया है, उससे लग रहा है कि पांचवें दिन कुछ भी हो सकता है।

ओल्ड ट्रैफर्ड का इतिहास और भविष्य की चुनौतियां

ओल्ड ट्रैफर्ड का इतिहास भारत के लिए कभी बहुत सुखद नहीं रहा है। इस मैदान पर भारत ने आज तक कोई टेस्ट मैच नहीं जीता है। यह आंकड़ा कहीं न कहीं खिलाड़ियों के दिमाग में जरूर होगा। लेकिन इतिहास बनते और बदलते रहते हैं। जिस तरह से राहुल और गिल ने बल्लेबाजी की है, उन्होंने दिखाया है कि यह टीम हार मानने वाली नहीं है।हालांकि, चुनौतियां अभी भी बहुत बड़ी हैं। पांचवें दिन सुबह का सत्र बेहद महत्वपूर्ण होगा। अगर राहुल और गिल अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाते हैं और कम से कम एक शतक पूरा करते हैं, तो भारत के पास मैच बचाने की या फिर अप्रत्याशित रूप से कुछ और करने की उम्मीदें बढ़ जाएंगी।

लेकिन इंग्लैंड के गेंदबाज आसानी से हार नहीं मानेंगे। ओल्ड ट्रैफर्ड की पिच पर दरारें पड़ चुकी होंगी, और स्पिनरों को भी मदद मिल सकती है। ऐसे में, भारतीय बल्लेबाजों को एक बार फिर अपनी एकाग्रता और धैर्य का परिचय देना होगा।एक और चिंता का विषय ऋषभ पंत की फिटनेस है। जिस तरह से उनकी पैर की हड्डी में चोट की खबरें आ रही हैं, वह चिंताजनक है। अगर उन्हें बल्लेबाजी के लिए उतरना पड़ा, तो क्या वह उसी अंदाज में खेल पाएंगे जिसकी उनसे उम्मीद की जाती है? यह भी एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब पांचवें दिन मिलेगा।

अंतिम विचार: क्रिकेट का रोमांच अभी बाकी है

चौथा दिन खत्म हो गया है, और ओल्ड ट्रैफर्ड में अभी भी रोमांच बाकी है। भारत ने भले ही एक मुश्किल स्थिति से खुद को संभाला है, लेकिन अभी भी डेंजर जोन से बाहर नहीं आया है। राहुल और गिल ने अपनी जुझारू पारियों से दिखाया है कि इस टीम में दम है। अब देखना यह है कि क्या वे पांचवें दिन भी इसी जज्बे को बरकरार रख पाते हैं और इतिहास रच पाते हैं, या फिर इंग्लैंड की गेंदबाजी उन्हें ध्वस्त कर देती है।एक क्रिकेट प्रेमी के तौर पर, मैं बस यही कह सकता हूं कि क्रिकेट का असली मजा तो इसी अनिश्चितता में है। मुझे उम्मीद है कि पांचवें दिन भी हमें एक रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा, और भारतीय टीम कुछ ऐसा करके दिखाएगी जो लंबे समय तक याद रखा जाएगा। यह सिर्फ एक टेस्ट मैच नहीं है, यह आत्मविश्वास की जंग है, धैर्य की परीक्षा है, और सबसे बढ़कर, क्रिकेट के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।

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