भारत बनाम इंग्लैंड चौथा टेस्ट, अंतिम दिन,ओल्ड ट्रैफर्ड का रण: हार नहीं, सीख की सुबह!

भारत बनाम इंग्लैंड चौथा टेस्ट, अंतिम दिन,ओल्ड ट्रैफर्ड का रण: क्रिकेट एक ऐसा खेल है जो सिर्फ आंकड़ों और रिकॉर्ड्स का मोहताज नहीं होता। इसमें भावनाएं होती हैं, संघर्ष होता है, और कभी-कभी हार में भी जीत की कहानी छुपी होती है। मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड में भारत और इंग्लैंड के बीच हुए चौथे टेस्ट मैच के पांचवें दिन का खेल ऐसी ही एक कहानी बनकर उभरा। यह सिर्फ एक ड्रॉ नहीं था, यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक सबक था, एक जज्बे की मिसाल था, और भविष्य के लिए एक उम्मीद की किरण था।

जब मौत के मुंह से खींच लाई जिंदगी!

पहला दिन, दूसरा दिन, तीसरा दिन… और फिर चौथा दिन। जब इंग्लैंड ने अपनी पहली पारी में 669 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर भारत पर 311 रनों की बढ़त ले ली, तब हम जैसे क्रिकेट प्रेमियों के मन में बस एक ही सवाल था—क्या भारत एक पारी से हार जाएगा? ओल्ड ट्रैफर्ड का इतिहास भारत के लिए कभी सुखद नहीं रहा है।

इस मैदान पर भारत ने अब तक 9 टेस्ट खेले हैं, और एक भी नहीं जीता। 1952 में तो भारतीय टीम एक ही दिन में दो बार ऑल आउट हो गई थी! ऐसे में जब भारत ने अपनी दूसरी पारी में बिना खाता खोले ही दो विकेट गंवा दिए, तो लगा कि अब बस औपचारिकता ही बची है।लेकिन क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। जहां उम्मीदें टूटती हैं, वहीं नए सितारे जन्म लेते हैं। शुभमन गिल और केएल राहुल ने जो जुझारू पारी खेली, वह किसी चमत्कार से कम नहीं थी। दोनों ने मिलकर 188 रनों की शानदार साझेदारी की और भारत को पारी की हार से बचाया। गिल का शतक, उनके कप्तानी करियर का चौथा शतक, यह दर्शाता है कि वह सिर्फ एक शानदार बल्लेबाज नहीं, बल्कि एक सक्षम कप्तान भी बन रहे हैं।

जडेजा और सुंदर: अनसंग हीरोज का उदय

क्रिकेट में अक्सर लाइमलाइट बल्लेबाजों या तेज गेंदबाजों को मिलती है, लेकिन इस मैच में रवींद्र जडेजा और वाशिंगटन सुंदर ने जो करके दिखाया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। जब गिल और राहुल आउट हुए, तब भी इंग्लैंड की बढ़त काफी ज्यादा थी, लेकिन इन दोनों खिलाड़ियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक-एक रन के लिए संघर्ष किया, हर गेंद को सम्मान दिया, और धैर्य के साथ अपनी पारियां खेलीं।जडेजा का नाबाद 107 रन और सुंदर का नाबाद 101 रन, यह सिर्फ व्यक्तिगत आंकड़े नहीं हैं। यह उस दृढ़ संकल्प की कहानी है जो एक टीम को मुश्किल से मुश्किल हालात से बाहर निकाल सकता है। दोनों के बीच 203 रनों की अटूट साझेदारी ने इंग्लैंड के गेंदबाजों को बेदम कर दिया। बेन स्टोक्स और जोफ्रा आर्चर जैसे धुरंधर भी इन दोनों को आउट नहीं कर पाए। यह साझेदारी सिर्फ स्कोरबोर्ड पर रन नहीं जोड़ रही थी, बल्कि यह इंग्लैंड के खेमे में निराशा भी पैदा कर रही थी।

दिलचस्प आंकड़े:

* ओल्ड ट्रैफर्ड में भारत का रिकॉर्ड:

इस मैच से पहले, भारत ने ओल्ड ट्रैफर्ड में 9 टेस्ट खेले थे और एक भी नहीं जीता था। 2014 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारत यहां एक पारी और 54 रनों से हारा था। यह ड्रॉ, भले ही जीत न हो, लेकिन एक नामुमकिन परिस्थिति से हार टालना अपने आप में एक उपलब्धि है।

* गिल का कप्तानी रिकॉर्ड:

शुभमन गिल अपनी पहली टेस्ट सीरीज में चार शतक लगाने वाले पहले कप्तान बन गए हैं। यह उनकी नेतृत्व क्षमता और बल्लेबाजी कौशल का प्रमाण है।

* जो रूट का ओल्ड ट्रैफर्ड पर राज:

भले ही इंग्लैंड मैच नहीं जीत पाया, लेकिन जो रूट ओल्ड ट्रैफर्ड में 1000 टेस्ट रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज बन गए हैं। उन्होंने इस मैदान पर 12 मैचों में 69.40 की औसत से 1041 रन बनाए हैं।

मानव स्पर्श: भावनाओं का खेल

क्रिकेट सिर्फ bat और ball का खेल नहीं है, यह भावनाओं का खेल है। पांचवें दिन, जब जडेजा और सुंदर क्रीज पर टिके हुए थे, तब हर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक की धड़कनें तेज थीं। हर चौके पर तालियां बज रही थीं, और हर डॉट बॉल पर सांसें थमी हुई थीं। यह क्रिकेट का मानवीय पहलू है, जो इसे इतना लोकप्रिय बनाता है।मैच के अंत में जब दोनों टीमों ने हाथ मिलाया और मैच ड्रॉ घोषित हुआ, तो भले ही जीत का स्वाद नहीं था, लेकिन एक गहरी संतुष्टि थी। यह संतुष्टि इस बात की थी कि टीम ने हार नहीं मानी, आखिरी दम तक संघर्ष किया, और अपने जज्बे का परिचय दिया। यह ड्रॉ भविष्य में बड़े मुकाबलों के लिए भारतीय टीम को और मजबूत करेगा।

आगे की राह

सीरीज अभी भी इंग्लैंड के पक्ष में 2-1 से है। आखिरी टेस्ट द ओवल में खेला जाएगा, और भारतीय टीम के पास सीरीज को 2-2 से बराबर करने का मौका है। ओल्ड ट्रैफर्ड में मिला यह ड्रॉ टीम के आत्मविश्वास को बढ़ाएगा। जो गलतियां हुई हैं, उनसे सीखने का समय है। गेंदबाजों को अपनी लाइन और लेंथ पर काम करना होगा, और बल्लेबाजों को बड़ी साझेदारी बनाने की कला को और निखारना होगा।एक क्रिकेट प्रेमी के तौर पर, मैं इस मैच को सिर्फ एक ड्रॉ के रूप में नहीं देखता। मैं इसे एक ऐसे मैच के रूप में देखता हूं जहां भारतीय टीम ने दिखाया कि वे हार मानने वालों में से नहीं हैं। यह एक ऐसी कहानी है जो हमें याद दिलाती है कि खेल में परिणाम से ज्यादा महत्वपूर्ण संघर्ष और भावनाएं होती हैं। ओल्ड ट्रैफर्ड का रण हार नहीं, बल्कि सीख की एक नई सुबह लेकर आया है!

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